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अंबेडकर की दृष्टि में मुस्लिम समाज... इस्लाम में जिस भाईचारे | दार्शनिक विचार

अंबेडकर की दृष्टि में मुस्लिम समाज...

इस्लाम में जिस भाईचारे की बात की गई है वह मानवता का भाईचारा नहीं है बल्कि उसका मतलब सिर्फ मुसलमानों का मुसलमानों से भाईचारा है। मुसलमानों के भाईचारे का फायदा सिर्फ उनके अपने लोगों को ही मिलता है और जो गैर-मुस्लिम हैं उनके लिए इस्लाम में सिर्फ घृणा और शत्रुता ही है।

मुसलमानों की वफादारी उस देश के लिए नहीं होती जिसमें वह रहते हैं, बल्कि उनकी वफादारी अपने धर्म के लिए होती है जिसका कि वह पालन करते हैं। दसरे शब्दों में कहें, तो इस्लाम सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिंदुओं को अपना निकट संबंधी मानने की इजाजत नहीं देता है।

"यह मुस्लिम 'ब्रदरहुड' का ही आधार है जो भारत के हर मुसलमान को यह कहने के लिये प्रेरित करता है कि वह मुसलमान पहले है और भारतीय बाद में। इसी भावना की वजह से भारतीय मुसलमानों ने भारत की तरक्की में बहुत छोटी भूमिका निभाई है और अपनी शक्ति मुस्लिम देशों के लिए व्यर्थ कर दी। क्योंकि एक मुसलमान की सोच में मुस्लिम देशों का स्थान पहला है और भारत का स्थान दूसरा है।

मुसलमानों के लिए हिंद 'काफिर' हैं और उनकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती है। इसलिए जिस देश में काफिरों का शासन हो, वह देश मुसलमानों के लिए 'दार-उल-हर्ब' (जहां मुसलमानों की हुकूमत नहीं है) है। ऐसी स्थिति में यह साबित करने के लिए सुबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमानों के अंदर हिंदू सरकार के शासन को स्वीकार करने की शक्ति मौजूद ही नहीं है।

~ डाॅ. भीमराव अम्बेडकर