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Suno लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में, किसकी बनी है आलम-ए- | Kalam se alfaaz ✍️

Suno

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में,
किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें,
इतनी जगह नहीं है मेरे दिल-ए-दागदार में.

उम्र-ए-दराज माँग कर लाये थे चार दिन,
दो आरज़ू में कट गए दो इंतज़ार में.

कितना है बदनसीब ज़फर दफ्न के लिए,
दो गज ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।